सतगुरु का सेवादार कौन होता है। एक महान सेवादार कोन होता है।

धन निरंकार जी और जो धन निरंकार को नही जानते हैं उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार स्वीकार हो।


आज हम बात करेंगे कि सतगुरु का जो सेवक होता है वो कैसा होता है? क्या उसकी भूमिका होती हैं।
सेवादार --
सतगुरु के प्रति समर्पित गुरसिख का नाम है सेवादार। जो गुरसिख सतगुरु के आदेशों उपदेशों को जीवन का श्रृंगार बना लेता है, सेवादार कहलाता है।
सेवादार विनम्र और निवाना होता है अर्थात हमेशा नीचे झुककर चलता है। अपने आप को गुरु चरणों मे मिटा देता है। सेवा ही सेवक का जीवन होता है। सतगुरु की सेवा के लिये सेवक हमेशा तैयार रहता है कि कब कहाँ से सेवा मिले और मै करूं। सेवा करने के लिये हमेशा आतुर और उत्सुक रहता है।
सेवा भाग भागकर करता है, जहां भी निष्काम सेवा मिलती है उसको कर लेता है। सेवादार को सेवा करे बिना चैन नहीं पड़ता है।


अवतार वाणी मे भी लिखा है कि--
"सेवक है जो इस सेवक का पूरी आज्ञा करता है।
      सेवक है जो इस मालिक का खलकत की सेवा करता है।
सेवक है जो इस मालिक का नेकी से भरपूर रहे।
     सेवक है जो इस मालिक का कुल बदियो से दूर रहे।
सेवक है जो इस मालिक का वह रंगा उसके रंग रहे।
    सेवक है जो इस मालिक का यह मालिक उसके संग रहे।
सेवक है जो इस मालिक का  वह नाम मालिक का जपता है।
    सेवक है जो इस मालिक का उसकी इज्जत रखता है।
सेवक है जो इस मालिक का ना चिल्लाये न फरियाद करे।
     अवतार कहे उस सेवक को तो मालिक भी खुद याद करे।"
इस प्रकार जो सेवक होता है वो हमेशा सतगुरु के आदेशों और उपदेश के लिये तैयार रहता है।
"सतगुरु का जो प्यारा सेवक सन्तो का यस गाता है।
             कहे अवतार गुरु अन्तर्यामी देख उसे हर्षाता है। "
अतः गुरुसिख का अपने सतगुरु प्रति प्रेम और लगाव ही उसको एक अच्छा सेवादार बनाता है।
तो ये था सेवक अपने बनाने वाले के प्रति झुकाव।
सेवक अपनी सेवा के बल से निराकार साकार को कुछ भी करने या कुछ देने के बाध्य कर देता है। सेवक की सेवा देखकर स्वयं यमराज भी चकित रह जाते हैं, और जो सतगुरु के सच्चे सेवक होते हैं वो मर्त्यु भय से नही डरते हैं।
तो सन्तो भक्तजनों इस प्रकार एक सच्चा सेवक बिना फल चाह के निष्काम सेवा करता चला जाता है।
धन निरंकार जी।

'सेवा'-- सुखो की खान --
""सारे सुखो की खान सेवा,
                              सतगुरु का वरदान सेवा।
है महान सेवा-2,
                   सेवा निश्छल हो,
और, निष्काम हो,
                   ये ना शोचे की,
 मेरा नाम हो,
               सेवा करते हैं जो,
सुख पाते हैं वो।
               है सारे दुखो पे  विराम सेवा-
है महान सेवा-2----
सेवा समझे नहीं मजबूरी,
                   सेवा तन से हो पूरी।
इसमे मान नही, अभिमान नहीं,
                   निरीक्षित हो, निष्काम सेवा।
है महान सेवा-2
               सारे सुखो की खान सेवा।""
धन निरंकार जी।
धन्यवाद।




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