हमे जहाँ मे रहकर एक जिंदा मिसाल क्यो बनना है? जहाँ मे रहकर अपने आप को सजाना संवारना है। हरदेव वाणी संकलन। पद-150

सन्तो,महापुरूषो जी धन निरंकार जी और जो धन निरंकार को नही जानते उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार स्वीकार हो।

हरदेव वाणी पद संख्या 150---

""किसी ने शीशे के ने बर्तन से मछली ओ आजाद किया।

      इक तालाब मे जाकर छोड़ा और उसको आबाद किया।

वो तालाब मे पहुंची और लेकिन नही दायरा तोड़ सकी।

     अपनी हद मे रही घूमती आदत को नही छोड़ सकी।



सतगुरु ने जब ज्ञान दिया तो इन्सा तंगदिली से उठा नही।

         अनहद और विशाल प्रभु से पल मे नाता जोड़ा है।

लेकिन है अफसोस की इन्सा तगंदिली से उठा नही।

        जहां खड़ा था वहीं खड़ा है उससे आगे बढ़ा नहीं।

अभी भी भाषा वही पुरानी अभी भी चलता चाल वही।

       अभी भी लब पर तेरा मेरा, अभी भी दिल का वही।

  सीमाओ की हदे तोड़कर बन्दे सभी विशाल बने।

      कहे 'हरदेव' जहाँ मे रहकर जिंदा एक मिसाल बने।।""

                    (Pic Source- Google)

तो इस प्रकार हमे सारे बन्धन तोड़कर हमे विशाल बनना है। जैसा ये सतगुरु चाहते है हमे वैसा हि बनना है।
हमे अपना ह्रदय विशाल करना है, हमेशा दूसरो का भला मांगना है।
कृपा करो जैसा ये चाहते हैं वैसा जीवन बन पाये।
बक्स लेना जी।

                      धन निरंकार जी।
                         धन्यवाद जी।


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