मन के दो भाग होते हैं। कौन-कौन से हैं वो । देखिये।
हमारे मन के दो भाग होते हैं। एक वो जिनका मन सतसगं मे लगता है दूसरा वो जिसका मन सतसगं मे नही लगता है।
कुछ लोग कहते हैं कि हमारा मन सतसगं मे नही लगता है। वास्तव मे वो सही कहते हैं पर वो ये नही बताते हैं कि उनका मन कहां लगता है ।
(समय की सतगुरु माता सुदिक्षा हरदेव जी महाराज जी)
तो उनका मन ऐसी जगहों पे लगा होता है जिनसे उत्थान नही, पतन होता है। तन मन और धन सभी शक्तियों का अपव्यय होता है। मनुष्य *वासनाओ और गंदी आदतो का गुलाम हो जाता है।
*( वासना== क्रोध, मोह, लालच, झूट, वैर, द्वेष, लोभ, इत्यादि)
तो बन्धुओ ! यह ज्ञात रहे कि बन्धन और मोक्ष का कारण ये मन ही है। अब प्रश्न आता है कि क्या दोनो का कारण केवल मन हो सकता है? उत्तर आता है- जी हाँ बिलकुल हो सकता है।
क्योकि जिस प्रकार ताले को खोलने और बन्द करने के लिये केवल चाबी उपयोग मे लायी जाती है। दोनो का साधन चाबी है, पर चाबी को घुमाने की दिशा पर निर्भर करता है कि किधर को खूल रही है, और किधर को बन्द हो रही है।
ठीक इसी प्रकार मन की बात है या मन की दिशा है।
अगर गलत दिशा मे चलेगा तो बन्धन का कारण बनता है और यदि सही दिशा मे, अर्थात सेवा सुमिरन सतसगं की दिशा मे चलेगा तो मोक्ष का कारण बनेगा।
मन खूश रहेगा। इधर-उधर नही डोलेगा।
तो सन्तो अगर हमे सतसगं मे मन लगाना है तो वैर,द्वेष, मोह, लोभ इत्यादि को त्यागकर बैठना होगा। हमे बिलकुल भिकारी की तरह झोली को फैलाकर बैठना होगा।
तो आप आशीर्वाद दो की दास भी सेवा सुमिरन और सतसगं मे मन लगा पाये। बक्स लेना जी।
धन निरंकार जी।
धन्यवाद्।
कुछ लोग कहते हैं कि हमारा मन सतसगं मे नही लगता है। वास्तव मे वो सही कहते हैं पर वो ये नही बताते हैं कि उनका मन कहां लगता है ।
(समय की सतगुरु माता सुदिक्षा हरदेव जी महाराज जी)
तो उनका मन ऐसी जगहों पे लगा होता है जिनसे उत्थान नही, पतन होता है। तन मन और धन सभी शक्तियों का अपव्यय होता है। मनुष्य *वासनाओ और गंदी आदतो का गुलाम हो जाता है।
*( वासना== क्रोध, मोह, लालच, झूट, वैर, द्वेष, लोभ, इत्यादि)
तो बन्धुओ ! यह ज्ञात रहे कि बन्धन और मोक्ष का कारण ये मन ही है। अब प्रश्न आता है कि क्या दोनो का कारण केवल मन हो सकता है? उत्तर आता है- जी हाँ बिलकुल हो सकता है।
क्योकि जिस प्रकार ताले को खोलने और बन्द करने के लिये केवल चाबी उपयोग मे लायी जाती है। दोनो का साधन चाबी है, पर चाबी को घुमाने की दिशा पर निर्भर करता है कि किधर को खूल रही है, और किधर को बन्द हो रही है।
ठीक इसी प्रकार मन की बात है या मन की दिशा है।
अगर गलत दिशा मे चलेगा तो बन्धन का कारण बनता है और यदि सही दिशा मे, अर्थात सेवा सुमिरन सतसगं की दिशा मे चलेगा तो मोक्ष का कारण बनेगा।
मन खूश रहेगा। इधर-उधर नही डोलेगा।
तो सन्तो अगर हमे सतसगं मे मन लगाना है तो वैर,द्वेष, मोह, लोभ इत्यादि को त्यागकर बैठना होगा। हमे बिलकुल भिकारी की तरह झोली को फैलाकर बैठना होगा।
तो आप आशीर्वाद दो की दास भी सेवा सुमिरन और सतसगं मे मन लगा पाये। बक्स लेना जी।
धन निरंकार जी।
धन्यवाद्।
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