भक्ति की शक्ति अर्थात भक्ति मे कितनी शक्ति होती है।

सन्तो महापुरूषो जी धन निरंकार जी और जो धन निरंकार को नही जानते हैं उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार स्वीकार हो।

  सतगुरु माता सुदिक्षा सविदंर हरदेव सिंह जी महाराज जी

आज हम बात करते हैं कि भक्ति में कितनी शक्ति होती है इसको एक उदहारण से समझते हैं--
तांबे के तीन इन्च तार की कीमत क्या होती है, कही भी पड़ा रहे उसको कौन पूछता है। पर यदि वही तार बिजली के फ्यूज वायर की जगह लगाा दिया जाये तो उसकी शक्ति अपार अनन्त हो जाती है। फिर वह बल्ब जला सकता है,पंखा घूमा सकता है, ट्रेन को चला सकता है, बड़़ी-बड़ी मशीने चला सकता है।
तो इस प्रकार कूड़े मे पड़ा मामूली सा तार बिजली से जुड़कर कितना शक्तिशाली हो जाता है। उसमे उतनी ही ताकत आ जाती है, जितनी की एक पावर हाउस मे।


इसी तरह माया के कचरे मे पड़ा हुआ जीव भी सतगुरु द्वारा जब इस निरंकार प्रभु परमात्मा से जोड़ दिया जाता है तब अनन्त भक्ति की शक्ति का उदय हो जाता है और फिर ये आत्मा इस परमात्मा का यशोगान करने लग जाती है।
तभी कहा भी गया - जानत तुमहि, तुमहि हो जाई।।
जो तुमको जान लेता है वो तुम मे समा जाता है अर्थात वो तुम्हारा हो जाता है।

मूल्यवान व्यक्ति--
*स्वर्ण कितना भी मूल्यवान क्यो न हो किन्तु सुगन्ध पुष्प से आती है । श्रृंगार के लिये दोनो का ही जीवन मे महत्व है।
इसी तरह ज्ञान कितना भी मूल्यवान क्यो न हो, किन्तु उसकी सुगन्ध बिना आचरण के नही आ सकती।*


       *इकठ्ठा किये हुए बहुत सारे ज्ञान की अपेक्षा आचरण मे उतरा हुआ रत्तीभर ज्ञान भी श्रेष्ठ होता है।
तो सन्तो इस प्रकार इस उदहारण से पता लगता है कि भक्ति मे कितनी शक्ति होती है।
तो इस प्रकार ये बात अच्छी लगे तो सभी व्हाटसप ग्रुप मे, फेसबुक, ट्वीटर इत्यादि पे शेयर कर देना जी।
धन निरंकार।
धन्यवाद।

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