गुरु और गुरसिख मे सम्बन्ध?
धन निरंकार सन्तो जी और जो धन निरंकार को नही जानते हैं उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार स्वीकार हो।
समय की सतगुरु माता सुदिक्षा हरदेव सिंह जी।
आज हम बात करेंगे कि एक गुरसिख का गुरू से क्या सम्बन्ध होता है।
इसको निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी महाराज जी ने बड़े हि सहज ढंग से समझाया है-----
गुरु ने हमे वही ज्ञान, वही द्रष्टि दी जो गुरू के पास थी। यहां तक कि जो गुरू का स्थान गुरु बैठता है, और गुरसिख को भी उसी स्थान पर बैठाया और गुरसिख के आगे भी सभी उसी तरह नतमस्तक होते हैं जैसे गुरु के आगे सभी झुकते हैं।
गुरु की द्रष्टि घट घट मे मालिक को वसा हुआ देखती है। गुरू किसी को छोटा, या बड़ा नही देखता है। किसी को अमीर या गरीब नही देखता है । किसी को महल या कुटिया वाला नहीं देखता बल्कि हर किसी को समान और सत्कार भाव से देखता है।
गुरसिख भी यदि इसी भाव से युक्त हो जाये तो उसका रुतबा भी गुरु जैसा हि हो जाता है। गुरसिख की महत्ता गुरु की द्रष्टि से देखने के कारण है इसके विपरीत यदि गुरसिख ये समझ ले की उसे ऊँचे स्थान पर बैठाया गया है तो शायद यह किसी विशेष गुण के कारण है और वह बहुत ऊँचा हो गया है लेकिन ऐसा है नही, यह तो इस ईश्वर अर्थात निरंकार प्रभु की कृपा है।
गुरु की तरह गुरसिख की भी यही भावना होनी चाहिये की हर गुरसिख मेरे सर का ताज है। गुरु की तरह ही गुरसिख को देखकर हमारे मन मे खुशी का भाव उतपन्न होना चाहिए।
तो इस तरह से गुरु और गुरसिख मे एक अटूट संबंध होता है जिसको इस निरंकार प्रभु परमात्मा ने भी सत्य माना है।
तो सन्तो भक्तजनों अगर बाबा जी द्वारा गुरु और गुरसिख मे दर्शाया गया ये समबन्ध अगर अच्छा लगे तो इसे सभी व्हाटसप ग्रुप, ट्वीटर और फेसबुक पर सेयर कर देना जी।
बक्स लेना जी।
धन निरंकार जी।
धन्यवाद जी।
समय की सतगुरु माता सुदिक्षा हरदेव सिंह जी।
आज हम बात करेंगे कि एक गुरसिख का गुरू से क्या सम्बन्ध होता है।
इसको निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी महाराज जी ने बड़े हि सहज ढंग से समझाया है-----
गुरु ने हमे वही ज्ञान, वही द्रष्टि दी जो गुरू के पास थी। यहां तक कि जो गुरू का स्थान गुरु बैठता है, और गुरसिख को भी उसी स्थान पर बैठाया और गुरसिख के आगे भी सभी उसी तरह नतमस्तक होते हैं जैसे गुरु के आगे सभी झुकते हैं।
गुरु की द्रष्टि घट घट मे मालिक को वसा हुआ देखती है। गुरू किसी को छोटा, या बड़ा नही देखता है। किसी को अमीर या गरीब नही देखता है । किसी को महल या कुटिया वाला नहीं देखता बल्कि हर किसी को समान और सत्कार भाव से देखता है।
निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी महाराज जी।
गुरु की तरह गुरसिख की भी यही भावना होनी चाहिये की हर गुरसिख मेरे सर का ताज है। गुरु की तरह ही गुरसिख को देखकर हमारे मन मे खुशी का भाव उतपन्न होना चाहिए।
तो इस तरह से गुरु और गुरसिख मे एक अटूट संबंध होता है जिसको इस निरंकार प्रभु परमात्मा ने भी सत्य माना है।
तो सन्तो भक्तजनों अगर बाबा जी द्वारा गुरु और गुरसिख मे दर्शाया गया ये समबन्ध अगर अच्छा लगे तो इसे सभी व्हाटसप ग्रुप, ट्वीटर और फेसबुक पर सेयर कर देना जी।
बक्स लेना जी।
धन निरंकार जी।
धन्यवाद जी।
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