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Showing posts from February, 2020

क्यो सतगुरु की नौकरी अच्छी होती है? कौन करता है ये नौकरी?कितना आनन्द होता है सतगुरु अर्थात निरंकार प्रभु परमात्मा की नौकरी मे?

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सन्तो, महापुरूषो जी धन निरंकार जी, और जो धन निरंकार को नही जानते, उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार स्वीकार हो ।        सतगुरु माता सुदिक्षा जी।  ( Pic Sourse- Google) आज हम बात करेंगे कि सतगुरु (परमात्मा का साकार) की नौकरी (निस्वार्थ सेवा) मे कितना आनन्द होता है। निरंकार का नौकर खुद निरंकार होता है कैसे? सतगुरु की जो नौकरी करता है, उसके पास तीनो लोको के सारे सुख होते हैं। तीनो लोको मे उसका यश गाया जाता है। सूर्य, धरती, चन्द्रमा, ग्रह, तारे, पानी, वर्षा, बादल आकाश, अग्नि,धूप और ठंड इत्यादि अपना-अपना काम निस्वार्थ रूप से करते रहते है, ये सभी निरंकार की नौकरी करते रहते हैं। सभी अपने समय से सारा काम करते रहते हैं। जैसा ही निरंकार प्रभु परमात्मा का आदेश होता है,उस काम (सेवा) को अच्छे से निभाते चले जाते हैं। सभी को निरंकार ने अलग-अलग सेवा बक्सि है, और सभी निस्वार्थ रूप से अपनी सेवा को पूरा करते हैं। तो इस प्रकार सतगुरु का नौकर (सेवक) जो होता है वो परमानंद से भरा रहता है।  जो इसकी नौकरी करता है, वह निरंकार का बहुत खास होता है और वह उसे( नौकर...

23 फरवरी 2020 के दिन पूरे भारत वर्ष मे स्वच्छता अभियान। गुरू पूजा दिवस। क्यो है ये दिन सबके लिये खास?

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सन्तो, महापुरूषो जी धन निरंकार जी और जो धन निरंकार को नही जानते हैं उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार स्वीकार हो। आज हम निरंकारी मिशन के एक ऐसे अभियान की बात करेंगे जिसकी सरहाना पूरा भारत वर्ष करता है।                (बाबा हरदेव सिंह जी महाराज जी) समूचे भारत वर्ष के निरंकारी परिवार द्वारा  23 फरवरी 2020 को बनाये जाने वाले इस त्यौहार का नाम है। - गुरू पूजा दिवस। इस दिन को हम बहुत ही धूम-धाम से बनाते हैं। 23 फरवरी के दिन ही बाबा हरदेव सिंह जी महाराज जी का जन्म हुआ था। इस दिन को हम सभी गुरु पूजा के रूप मे बनाते हैं। और इस दिन पूरे भारत मे सभी सरकारी जिला अस्पतालों, भवनो, इमारतों,नालियाँ और पार्किंग इत्यादि की सफाई, की जाती है और इसके साथ मेगा ट्री प्लानटेशन (पौधा रोपण)  भी किया जाता है। तो हर साल की भाति इस साल भी स्वच्छता अभियान की ब्राडं एम्बेसडर सन्त निरंकारी चैरिटेबल फाउंडेशन  (SNCF) निरंकारी सेवादल और स्थानीय संगत और समबन्धित अधिकारियों ने फिर से देश के लगभग 400 शहरो के 1166 सरकारी अस्पतालों की  सफाई   नि...

सेवा सतगुरु की। सतगुरु की सेवा मे कितना आनन्द होता है।

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सन्तो महापुरूषो जी धन निरंकार जी और जो धन निरंकार को नही जानते हैं उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार स्वीकार हो।          सतगुरु माता सुदिक्षाहरदेव सिंह जी महाराज जी आज हम बात करेंगे की सेवा क्या होती है। सतगुरु को ये सेवा क्यो भाती है, क्यो एक सेवक भाग-भागकर सेवा करता है। आज सुबह की ही बात है, जब मैं घर से निकला तो मुझे कही जाना था। कुछ दुर तक तो बस से गया फिर बस से जैसे हि उतरा तो गंतव्य तक पहुंचने के लिये ओटो रिक्सा की जरूरत पड़ती है पर सुबह मे कम रिक्सा होने की वजह से मै 5-7 किमी जाने के लिये पैदल ही चल पड़ा और शोचा कि आगे से शायद कोई सवारी मिल जाये। जैसे हि कुछ दूर चला तो पीछे से किसी बाइक वाले  ने आवाज दी कि कहाँ जाना है मैने उसको जगह का नाम बताया कि मुझे वहां तक जाना है तो वो बोला कि मै भी उधर से निकलूंगा आपको छोड़ दूंगा। मैने कहा अच्छी बात है चलो। दरअसल वो व्यक्ति अपने लड़के को पेपर देने के लिये छोड़कर आ रहा था । आज 10th class का पेपर था। तो उसने मुझे बाइक पर बैठा लिया और चल पड़ा। आश्चर्य तो तब हुआ जब वो बन्दा जहाँ उसको जाना था वहां न रुक कर...

सतगुरु का सेवादार कौन होता है। एक महान सेवादार कोन होता है।

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धन निरंकार जी और जो धन निरंकार को नही जानते हैं उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार स्वीकार हो। आज हम बात करेंगे कि सतगुरु का जो सेवक होता है वो कैसा होता है? क्या उसकी भूमिका होती हैं। सेवादार -- सतगुरु के प्रति समर्पित गुरसिख का नाम है सेवादार। जो गुरसिख सतगुरु के आदेशों उपदेशों को जीवन का श्रृंगार बना लेता है, सेवादार कहलाता है। सेवादार विनम्र और निवाना होता है अर्थात हमेशा नीचे झुककर चलता है। अपने आप को गुरु चरणों मे मिटा देता है। सेवा ही सेवक का जीवन होता है। सतगुरु की सेवा के लिये सेवक हमेशा तैयार रहता है कि कब कहाँ से सेवा मिले और मै करूं। सेवा करने के लिये हमेशा आतुर और उत्सुक रहता है। सेवा भाग भागकर करता है, जहां भी निष्काम सेवा मिलती है उसको कर लेता है। सेवादार को सेवा करे बिना चैन नहीं पड़ता है। अवतार वाणी मे भी लिखा है कि-- "सेवक है जो इस सेवक का पूरी आज्ञा करता है।       सेवक है जो इस मालिक का खलकत की सेवा करता है। सेवक है जो इस मालिक का नेकी से भरपूर रहे।      सेवक है जो इस मालिक का कुल बदियो से दूर रहे। सेवक है जो इस मालिक का वह ...

जिनके जीवन मे गुरु है वो लोग कितने भाग्यशाली हैं।

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सन्तो महापुरूषो जी धन निरंकार जी और जो धन निरंकार को नही जानते हैं उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार स्वीकार हो              सतगुरु माता सुदिक्षा हरदेव सिंह जी महाराज जी।  वैसे तो गुरु की महिमा को शब्दो मे नही उतारा जा सकता है फिर भी एक छोटे उदहारण सहायता से पता करेंगे की जीवन मे गुरु का साथ होने से क्या प्रभाव पड़ता है।  "चीटी कितनी छोटी होती है। यदि उसको दिल्ली से मुम्बई जाना पड़े तो 2-3 जन्म तो लेने पडेंगे ही। पर यही चीटी यदि किसी दिल्ली से मुम्बई जाने वाले व्यक्ति के कपड़ो पर बैठ जाये तो बड़े आराम से दिल्ली से मुम्बई पहुंच जायेगी। ठीक इसी प्रकार अपने प्रयास से भव सागर को पार करना बहुँत ही कठिन होता है।  पता नहीं कितने जन्म लेने पडेंगे। पर फिर भी प्रभु परमात्मा का मिलना आसान नही है।  यदि हम गुरु का हाथ पकड़ ले और उनके बताये हुऐ सन्मार्ग पर श्रद्धापूर्वक चले तो गुरु बड़े आराम से हमको भवसागर से पार लगा सकते हैं।  तो हमको इस भवसागर से पार उरने के लिये गुरु का हाथ पकड़ने की जरूरत है। वरना इस दुनिया मे कोई दुसरी शक्ति...

नफरत को दिल से मिटाना है। नफरत और प्यार मे सम्बन्ध है।

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सन्तो, महापुरूषो जी धन निरंकार जी और जो धन निरंकार को नही जानते, उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार स्वीकार हो। हरदेव वाणी पद --151 "नफरत तपती धूप है भाई प्यार ही शीतल छाया है।     नफरत देती देती दुख ही दुख तो प्यार ने सुख पहुंचाया है। नफरत ने हर बार मिटाया है प्यार ने हर बार बचाया है।      नफरत ने संसार उजाड़ा प्यार ने सदा बसाया है। नफरत ने दीवार उठाई प्यार ने सेतू बनाया है।     नफरत ने तो जुदा किया है प्यार ने सदा मिलाया है। नफरत है रोग भयानक सबके लिये है प्यार दवा।       नफरत तो इक लानत सी है जीवन मे है प्यार दुआ। नफतरत रेगिस्तान है और प्यार नदी का पानी है।       नफरत ने प्यासा रखना है प्यार ने प्यास बुझानी है। नफरत है इक गहरी खाई प्यार शिखर है पर्वत का। ग      प्यार चूनेगा या नफरत को निर्णय है तेरी मत का। सन्तो ने ये कहा हमेशा प्यार सदा अपनाना है।     कहे ''हरदेव'' दिल से अपने नफरत वैर मिटाना है।"                (Pic Sourc...

हमे जहाँ मे रहकर एक जिंदा मिसाल क्यो बनना है? जहाँ मे रहकर अपने आप को सजाना संवारना है। हरदेव वाणी संकलन। पद-150

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सन्तो,महापुरूषो जी धन निरंकार जी और जो धन निरंकार को नही जानते उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार स्वीकार हो। हरदेव वाणी पद संख्या 150--- ""किसी ने शीशे के ने बर्तन से मछली ओ आजाद किया।       इक तालाब मे जाकर छोड़ा और उसको आबाद किया। वो तालाब मे पहुंची और लेकिन नही दायरा तोड़ सकी।      अपनी हद मे रही घूमती आदत को नही छोड़ सकी। सतगुरु ने जब ज्ञान दिया तो इन्सा तंगदिली से उठा नही।          अनहद और विशाल प्रभु से पल मे नाता जोड़ा है। लेकिन है अफसोस की इन्सा तगंदिली से उठा नही।         जहां खड़ा था वहीं खड़ा है उससे आगे बढ़ा नहीं। अभी भी भाषा वही पुरानी अभी भी चलता चाल वही।        अभी भी लब पर तेरा मेरा, अभी भी दिल का वही।   सीमाओ की हदे तोड़कर बन्दे सभी विशाल बने।       कहे 'हरदेव' जहाँ मे रहकर जिंदा एक मिसाल बने।।""                     (Pic Source- Google) तो इस प्रकार हमे सारे बन्धन तोड़कर ह...

गुरु और गुरसिख मे सम्बन्ध?

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धन निरंकार सन्तो जी और जो धन निरंकार को नही जानते हैं उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार स्वीकार हो।             समय की सतगुरु माता सुदिक्षा हरदेव सिंह जी। आज हम बात करेंगे कि एक गुरसिख का गुरू से क्या सम्बन्ध होता है। इसको निरंकारी बाबा हरदेव सिंह  जी महाराज जी ने बड़े हि सहज ढंग से समझाया है----- गुरु ने हमे वही ज्ञान, वही द्रष्टि दी जो गुरू के पास थी। यहां तक कि जो गुरू का स्थान गुरु बैठता है, और गुरसिख को भी उसी स्थान पर बैठाया और गुरसिख के आगे भी सभी उसी तरह नतमस्तक होते हैं जैसे गुरु के आगे सभी झुकते हैं। गुरु की द्रष्टि घट घट मे मालिक को वसा हुआ देखती है। गुरू किसी को छोटा, या बड़ा नही देखता है। किसी को अमीर या गरीब नही देखता है । किसी को महल या कुटिया वाला नहीं देखता बल्कि हर किसी को समान और सत्कार भाव से देखता है। निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी महाराज जी।  गुरसिख भी यदि इसी भाव से युक्त हो जाये तो उसका रुतबा भी गुरु जैसा हि हो जाता है। गुरसिख की महत्ता गुरु की द्रष्टि से देखने के कारण है इसके विपरीत यदि गुरसिख ये समझ ले की उसे ऊँच...

ईश्वर निराकार है या साकार? सतगुरु क्या है? सतगुरु और निराकार मे क्या सम्बन्ध है?

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सन्तो- महापुरूषो जी धन निरंकार जी और जो धन निरंकार को नही जानते हैं, उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार स्वीकार हो। आज हम बात करेंगे कि ईश्वर निराकार रूप है या साकार रूप है। कहानी शुरु होती है तब, जब रामावतार के समय माता पार्वती महादेव से पूछती है कि- जो गुन सहित सगुन सोई कैसे। अर्थात जो बिना आकार के है वो साकार कैसे हो सकते हैं। तब महादेव जी कहते हैं कि- जो गुन रहित सगुन सोई कैसे। जलु हिम उपल विलग नहीं जैसे। अर्थात जैसे भाप भी पानी है, और बर्फ भी पानी है। इन दोनो मे भेद नही है फिर सगुण और निरगुन मे कैसा भेद । अर्थात निर्गुण और सगुण मे कोई भेद नही होता है। निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी महाराज जी कहते थे-- ""जिसकी भक्ति जिसकी पूजा उसका ज्ञान जरूरी है।       कहे 'हरदेव' की पहले ईश्वर की पहचान जरुरी है।"" तात्पर्य यह कि ईश्वर को साकार रूप मे देखने के लिये एक अलौकिक उस दिव्य दृष्टि की आवश्यकता होती है जो केवल सतगुरु की कृपा से ही प्राप्त होती है। हम बहुत ही भाग्यशाली हैं कि ईश्वर निराकार और साकार दोनो रूपों मे हमारे अंग संग रहते है। तो सन्तो यहां स...

भक्ति की शक्ति अर्थात भक्ति मे कितनी शक्ति होती है।

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सन्तो महापुरूषो जी धन निरंकार जी और जो धन निरंकार को नही जानते हैं उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार स्वीकार हो।   सतगुरु माता सुदिक्षा सविदंर हरदेव सिंह जी महाराज जी आज हम बात करते हैं कि भक्ति में कितनी शक्ति होती है इसको एक उदहारण से समझते हैं-- तांबे के तीन इन्च तार की कीमत क्या होती है, कही भी पड़ा रहे उसको कौन पूछता है। पर यदि वही तार बिजली के फ्यूज वायर  की जगह लगाा दिया जाये तो उसकी शक्ति अपार अनन्त हो जाती है। फिर वह बल्ब जला सकता है,पंखा घूमा सकता है, ट्रेन को चला सकता है, बड़़ी-बड़ी मशीने चला सकता है। तो इस प्रकार कूड़े मे पड़ा मामूली सा तार बिजली से जुड़कर कितना शक्तिशाली हो जाता है। उसमे उतनी ही ताकत आ जाती है, जितनी की एक पावर हाउस मे। इसी तरह माया के कचरे मे पड़ा हुआ जीव भी सतगुरु द्वारा जब इस निरंकार प्रभु परमात्मा से जोड़ दिया जाता है तब अनन्त भक्ति की शक्ति का उदय हो जाता है और फिर ये आत्मा इस परमात्मा का यशोगान करने लग जाती है। तभी कहा भी गया - जानत तुमहि, तुमहि हो जाई।। जो तुमको जान लेता है वो तुम मे समा जाता है अर्थात वो तुम्हारा हो जाता है। ...

मन के दो भाग होते हैं। कौन-कौन से हैं वो । देखिये।

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हमारे मन के दो भाग होते हैं। एक वो जिनका मन सतसगं मे लगता है दूसरा वो जिसका मन सतसगं मे नही लगता है। कुछ लोग कहते हैं कि हमारा मन सतसगं मे नही लगता है। वास्तव मे वो सही कहते हैं पर वो ये नही बताते हैं कि उनका मन कहां लगता है ।      (समय की सतगुरु माता सुदिक्षा हरदेव जी महाराज जी) तो उनका मन ऐसी जगहों पे लगा होता है जिनसे उत्थान नही, पतन होता है। तन मन और धन सभी शक्तियों का अपव्यय होता है। मनुष्य *वासनाओ और गंदी आदतो का गुलाम हो जाता है।  *( वासना== क्रोध, मोह, लालच, झूट, वैर, द्वेष, लोभ, इत्यादि) तो बन्धुओ ! यह ज्ञात रहे कि बन्धन और मोक्ष का कारण ये मन ही है। अब प्रश्न आता है कि क्या दोनो का कारण केवल मन हो सकता है? उत्तर आता है- जी हाँ बिलकुल हो सकता है। क्योकि जिस प्रकार ताले को खोलने और बन्द करने के लिये केवल चाबी उपयोग मे लायी जाती है। दोनो का साधन चाबी है, पर चाबी को घुमाने की दिशा पर निर्भर करता है कि किधर को खूल रही है, और किधर को बन्द हो रही है। ठीक इसी प्रकार मन की बात है या मन की दिशा है। अगर गलत दिशा मे चलेगा तो बन्धन का कारण बनता है और यदि ...